अगली मुलाकात

मुलाकात तो वर्षों बाद हुई थी । तय ना थी । एक दिन चलते चलते बस आमना सामना हो गया ।

जाने अनजाने ही सही मुलाकात हो गयी तो उसे अनदेखा भी नहीं कर सकती थी । बैचैनी काफी थी उस वक़्त, सालों बाद कोई इस कदर मिल जाये, लाजमी हैं ये घबराहट ।

नजरें मिली, मुस्कराहट के साथ मिलें हम । शुरुवात के कुछ क्षणों में ख़ामोशी बातें कर रही थी । ख़ामोशी  तोड़नी पड़ी मुझे क्यूंकि बड़ा अजीब लग रहा था वो शांत पल, एक सीधा सा सवाल कर दिया मैंने और बताओ क्या चल रहा जिन्दगी में ??

खोखला मालूम होता है अब ये सवाल, यु वर्षों बाद क्या मतलब बनता था उस सवाल का, कोई क्यों अपनी जिंदगी के पन्नों को मुझे पढ़ने देगा ।

लोग बड़ा आसान मानते है इस सवाल को क्योकि ये अक्सर पूछे जाने वाले सवालों में से है, किन्तु मेरा तात्पर्य तो कुछ और ही था उस वक़्त , मेब उससे कुछ अलग जवाब की अध रखती थी । ये नहीं कहूँगी की उसने मुझे निराश किया पर उसके जवाब ने मेरे मन में और भी सवाल पैदा कर दिए, जवाब था, हाँ चल रही जिंदगी ।

क्या इस सवाल का जवाब इतना आसान मालूम पड़ता था उसे ?

मुझसे पूछे जाने पे, मैं घंटो बिना रुके बता सकती थी उसे अपने जीवन के चल रहे घटनाओं के बारे में । यदि वो भी चाहता तो अपने जीवन में चल रहे घटनाओं से अवगत करा सकता था मुझे, अपनी परेशानियाँ भी बाँट सकता था ,खुशियाँ भी शायद । क्यों नहीं आखिर जिन्दगी के बारे में जब पूछा मैंने वो मानसिक, आर्थिक, शारीरिक, सामजिक सभी तथ्यों के बारे में बता सकता था पर उसने तो बहुत ही सीधा जवाब  दिया ।

समझ नहीं आ रहा था उस वक़्त, क्या मेरा सवाल उसे इतना आसान मालूम हुआ था या मैं उसके जवाब को ले के ज्यादा सोच रही थी ।

वो मुझे अछुता रखना चाहता होगा अपनी जीवन की  कठिनाइयों से या उन गतिविधियों से जो उसके जीवन में चल रहे थे । उसके जवाब से न तो मैं संतुष्ट थी, ना ही उसके चेहरे पे संतोष की झलक दिख रही थी, जो एक सच्चा जवाब दे के अक्सर हमारे चेहरे पे दिखती हैं ।

बहुत ही विवशता महसूस हुई, जवाब ना तो मानते बन रहा था ना उसके जवाब को गलत कह सकती थी । वो जवाब जो मेरे मन का सवाल बन के रहा गया ।

राह चलते यु ही एक मुलाकात, एक सवाल और मैं  जटिल सवालों के घेरों में आ खड़ी हुई, अपने ही पूछे गए एक सवाल के कारण ।

हम दोनों अपने अपने रास्ते चल पड़े, अगली मुलाकात भी तय न हुई । शायद हम दोनों झिझक रहे थे ये कहते, दोबारा मिलते है । सालों तक मिलने की कोई कोशिश तो नहीं की थी यूँ ही मुलाकात हो गयी, तो आज क्यों दिखावा करना पुछ के ,ये सोच के भी हम दोनों ने कुछ तय नहीं किया होगा शायद ।

यह तो नहीं कह सकती उसके मन में हलचल थी या नहीं पर उस वक़्त मेरे दिमाग में अनगिनत सवाल थे।

क्या वो अब भी बीती बातें याद करता होगा, पर क्या फायदा अतीत में जा के कोई गलतियाँ सुधारी तो नहीं जा सकती । जो है आज है इस वक़्त है काश उसे मैं ये समझा पाती, पश्चाताप का भाव सबसे बड़ा है ये पहले भी समझाया था मैंने उसे ना जाने अब उसे याद है भी की नहीं मेरी बातें ।

क्या अब भी वक़्त को अपने खिलाफ मानता था, पर वक़्त कहाँ किसी के खिलाफ है ये तो अपनी एक निरंतर गति से चलती रहती है, सवाल ये है हम उसे गति क साथ चल पा रहे है या नहीं । अक्सर वो समय को कोसता था हालातों के लिए , मैंने समझाया भी था अपने हालात के लिए हम जिम्मेदार है ना ही समय और ना ही लोग ।  जो कल गलतियाँ की होगी तो पछतावा है, जो कुछ सही निर्णय लिए होंगे तो आज मंजिलो का बुलावा है ।

ऐसे कितने सवाल और उनके जवाब मेरे मन में तब तक आते रहे जब तक मैं वापस घर पहुँच के अपने कामों में मशगुल न हो गयी ।

पर कम ख़त्म होते ही वापस वो ही बातें, ऐसा लग रहा था जैसे मैंने उससे कोई बेहद ही बेतुका सवाल कर दिया , कितना निरर्थक मालूम होता था मेरा सवाल । जवाब मिले भी तो ऐसे की हजारों सवाल आ खड़े हुए मन में।

वो अब पहले से ज्यादा समझदार हो चुका था तभी उसने मुझसे कोई सवाल करना उचित ना समझा, मुस्कुरा के समझदारी दिखाई उसने । सही भी था वो, यूँ ही राह चलते हम कहाँ किसी क जीवन के पहलु से वाकिफ हो सकते । काश मैंने भी ख़ामोशी का चुनाव किया होता।

इतनी असमंजस तो नहीं होती, इतने सवाल तो न होते ।
भरे इस असमंजस में, अंतर्मन से बस एक ही आवाज आ रही थी, दोबारा मुलाकात हुई तो सवाल बदल लेना ।

वक़्त है अगली मुलाकात तक, शायद तब उसे मेरे सवाल में तर्क दिखे ।

29 thoughts on “अगली मुलाकात

  1. prashantt says:

    Kya baat hai….you’re among my favorite blogger due to your best work in hindi writings here and this one is awestruck…बेहतरीन 👌👏👏

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