तन्हाई की जुबानी

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फुरसत के लम्हों में जब कभी तन्हाई से मुलाकात होती है
लफ्जों पे तन्हाई की एक फरियाद सी होती है

कहती वो मुझसे, देखा है अक्सर साथ छोड़ जाते है लोग
तब भी क्यों सिर्फ साथ की ही बात होती है

अकेलेपन की सिर्फ एक साथ हु मैं
तब भी नापसंद आने वाली बात हूँ मैं

इन्सान भले ही मुझे किसी के साथ क लिए छोड़ जाते है
धोखा पा के वापस जब लौटते, मुझे तब भी अपने साथ  पाते है

बेहतर हूँ मैं झुठे लोगो और उनके झूठे वादों से
आशा करती हूँ समझ सको मर्म मेरे ,मेरी इन फरियादों से

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